भारत के ग्रामीण इलाकों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है
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और लोगों को इलाज कराने के लिए बड़े और महंगे शहरों में भागना पड़ता है.
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21 साल के मिथिलेश चौधरी दिल्ली के सरकारी अस्पताल आखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान (एम्स) के बाहर पूरी रात बिताने के बाद कमजोरी के साथ खांस रहे हैं.
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उनके दादा भीमलाल कहते हैं, "पिछले दो रातों से हम फुटपॉथ पर सो रहे हैं." वे और उनके पोते करीब सौ लोगों के साथ अस्पताल में अपाइंटमेंट के लिए कतार में खड़े हैं.
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भीमलाल कहते हैं, "उसकी छाती में कंजेशन है और कोई भी नहीं बता पा रहा है कि आखिर मसला क्या है.
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हम अपने जिले के कई अस्पतालों में गए और आखिरकार एक निजी अस्पताल के डॉक्टर ने कहा कि दिल्ली के एम्स में जाकर दिखाओ."
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मिथिलेश चौधरी बिहार के रहने वाले हैं और उनके पास एम्स में डॉक्टर को दिखाने के लिए कोई अपाइंटमेंट नहीं है.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2014 में कार्यभार संभालने के बाद से विशेष उपचार के लिए एक दर्जन से अधिक एम्स जैसे चिकित्सा संस्थानों का निर्माण किया है.
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सरकार की देश के 761 जिलों में से हरेक में कम से कम एक बड़ा अस्पताल बनाने की योजना है.
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सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि मोदी के कार्यकाल में विशेष संस्थानों को छोड़कर, सार्वजनिक अस्पतालों की संख्या में लगभग नौ फीसदी की वृद्धि हुई है.
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स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक सरकार ने निजी और सार्वजनिक कॉलेजों में स्नातक मेडिकल सीटों की जो संख्या मार्च 2014 से पहले 51,348 थी उसे लगभग दोगुनी कर 1,01,043 कर दी है.